प्रतियोगी परिक्षाओं के लिए जनरल साइंस के अध्ययन के दौरान जीवन और पदार्थ की उत्पत्ति के बारे में अलग, नई और तार्किक परन्तु अवैज्ञानिक परिकल्पना बनना शुरु हुइ। वैज्ञानिक सिद्धान्तों और परिकल्पनाओं से अनजान सुरेश कुमार ने असामान्य विश्व के प्रथम संस्करण-2000 में अपनी अवैज्ञानिक परन्तु मौलिक परिकल्पनाओं को तर्कसंगत बनाते हुए प्रकाशित किया। फिर विज्ञान विषय से जुड़े शिक्षकांे और बौद्धिकों को निशुल्क पहुंचाकर उनकी प्रतिक्रियाएं प्राप्त की। अपनी परिकल्पना के समर्थन में साक्ष्य जुटाने के लिए विज्ञान विषयों के साथ वैदिक और पौराणिक अवधारणाओं, गीता प्रेस के प्रकाशनों का अध्ययन और मनन किया। विज्ञान विषयों के अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ कि आधुनिक विज्ञान के एक छोटे से भाग को एम्पिरिकली साबित करके ही सारे सिद्धान्तों को साबित मान कर आधुनिक विज्ञान की इमारत खड़ी की गई है। इससे एक विवादास्पद स्थिति जन्म हुआ कि वास्तव में जीवन और पदार्थ कैसे बना ? इससे एक स्वतंत्र परिकल्पना बनना शुरु हुई जो तार्किक तो थी परन्तु वैज्ञानिक नहीं थी। इससे एक अदभुत चिन्तन, मनन, निरिक्षण और संशोधन की प्रक्रिया की शुरु हुई। इससे परिकल्पना आगे बढ़ने लगी। असामान्य विश्व के प्रत्येक अगले संस्करण में वैज्ञानिक तथ्यों की अनभिज्ञता से बनी शुरुआती अवैज्ञानिक परिकल्पना वैज्ञानिक तथ्यों, परिकल्पनाओं और सिद्धान्तों के अध्ययन, निरिक्षण और मनन से खारिज होती गई। इनके स्थान पर नई परिकल्पनाएं विकसित होकर प्रतिस्थापित होती गई। परन्तु फिर भी 16वें संस्करण-2016 तक यह परिकल्पना प्रयोगयोग्य नहीं हो सकी। 17 वें सस्करण 2023 में मोदी इफक्ट की सहायता से प्रयोगयोग्य हो गई
मोदी इफक्टः- अमृतकाल की शुरुआत करते हुए स्वतंत्रता दिवस 2022 को लाल किले से माननीय प्रधान मंत्री ने अपने सम्बोधन में वैदिक सूत्र ‘‘यत् पिण्डे तत् बह्माण्डे‘‘ को बड़े महत्वपूर्ण तरीके के सारे संसार के सामने प्रस्तुत किया। इस एक वैदिक सूत्र में विज्ञान के सार तत्व को रेखांकित किया। इसे महान विरासत बताते हुए हर भारतीय को इस पर गर्व करने के लिए अति उत्साही आव्हान किया। सारे विश्व में यह संदेश प्रसारित हुआ। श्री मोदी जी ने ‘‘यत् पिण्डे तत् बह्माण्डे‘‘ भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा से जोड़ दिया। लेखक ने इस सूत्र वैज्ञानिक तरीके से साबित करने की ठानी तो ग्रेविट का नया आइडिया मिला। नए आइडिए की सहायता सुरेश कुमार ने अत्यधिक प्रेरित होकर अपने सारे ध्यान और ज्ञान को वैदिक सूत्र ‘‘यत् पिण्डे तत् बह्माण्डे‘‘ पर फोकस कर दिया। फिर सुरेश कुमार ने जीवन और अन्तरिक्षय पिण्ड के बीच वैज्ञानिक समानता की तलाश शुरु की। यह तलाश ग्रेविटि और अन्तरिक्षीय पिण्ड बनने के नए आईडिए के जन्म के साथ पूरी हुई। ‘‘यत् पिण्डे तत् बह्माण्डे‘‘ से स्फूर्त आइडिए से असामान्य विश्व परिकल्पना में क्रान्तिीकारी समझ का समावेश हुआ। भाजपा के कार्यकर्ता और स्वंय सेवक होने के नाते लेखक हिन्दुत्व कीे प्रमुख अवधारणाओं से बचपन से ही परिचित था। इसलिए असामान्य विश्व के प्रत्येक संस्करण पर हिन्दुत्व का प्रभाव स्पष्ट तरीके से पड़ा।
प्रेरक रोचक प्रसंगः-
1. सुरेश कुमार कला स्नातक है और प्रधानमहालेखकार कार्यालय में व॰ लेखाकार पद से रिटायर हुए। विज्ञान विषयों में रुचि होने कारण हिन्दुत्व जनित विज्ञान को प्रयोगों से साबित करके पुनः स्थापित करने की इच्छा धीरे धीरे एक अपरिपक्व परिकल्पना असामान्य विश्व परिकल्पना में बदली। इस परिकल्पना को प्रयोगों से साबित करने हेतु इसके समर्थन में वैज्ञानिक तथ्य जुटाने के प्रयास में यह परकिल्पना एक वैज्ञानिक परिकल्पना में बदल गई। जिसे आधुनिक विज्ञान के किसी तथ्य या सिद्धान्त से खारिज नहीं किया जा सकता।
2॰ लेखक ने राजस्थान विश्व विद्यालय के भौतिकि विभाग के प्रो॰सुधीर रानीवाला को 16वें संस्करण-2016 की एक प्रति फरवरी 2016 में भेंट की। तब रानीवाला ने पुस्तक का एक पन्ना पलट कर लेखक को कहा कि ‘‘यह साइंस नहीं है, एक किताब फिजिक्स की पढ़ और समझ कर ही मेरे कमरे में दुबारा प्रवेश करना‘‘।
इस रानीवाला प्रसंग ने अद्भुत तरीके से लेखक को प्रेरित कर फिजिक्स के साथ विज्ञान विषयों की गहन आनलाइन पढ़ाई करने के लिए मजबूर कर दिया। इस अध्ययन की सहायता से मोदी इफक्ट पूरी तरह प्रभावी हुआ और ग्रेविटि का नया आइडिया जनरेट हुआ। इससे अपरिपक्व असामान्य विश्व परिकल्पना एक वैज्ञानिक परिकल्पना में बदली और इसे प्रयोगों से साबित करने का रास्ता भी दिखाई दिया।
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