भारत को विश्व गुरु बनाना है और इसकी शुरुआत काशी से करनी है।
प्र.म.नरेन्द्र मोदी, गंगा आरती के समय
भारत को विश्व गुरु बनना है, इसलिए ‘‘यत् पिण्डे तत् बह्माण्डे‘‘ वैज्ञानिक साबित होना है।
भारत को विश्व गुरु बनना है, इसलिए प्रयोग से अन्तरिक्ष में जीवन बीजों का जन्म होना है।
भारत को विश्व गुरु बनना है, इसलिए अन्तरिक्ष में न्युक्लियर फ्यूजन से ग्रेविटि का जन्म होना है।
भारत को विश्व गुरु बनना है, इसलिए न्युक्लियर फ्यूजन से मंगल का नया उपग्रह बनना है।
भारत को विश्व गुरु बनना है, इसलिए 2047 तक विकसित भारत संकल्प साकार होना है।
भारत को विश्व गुरु बनना है, इसलिए अमृत काल में भारत को विज्ञान शक्ति बनना है।
भारत को विश्व गुरु बनना है, इसलिए तीसरा मादी युग (2024-2029) आना है।
असामान्य विश्व
मोदी इफक्ट :- प्रधानमंत्री श्री मोदी ने लाल किले से 15 अगस्त 2022 को वैदिक सूत्र ‘‘यत् पिण्डे तत् बह्माण्डे‘‘ को महान भारतीय विरासत बताते हुए इस पर हर भारतीय को गर्व करने की सीख दी। ब्रह्माण्ड और जीवों में एक वैज्ञानिक समानता दिखाने का प्रयास करते हुए कहा कि जो बह्माण्ड में है वो हर जीव मात्र में है। इस समानता का विश्लेषण करते करते भाजपा कार्यकर्ता तथा स्वंयसेवक सुरेश कुमार को एक बड़ा आइडिया मिला कि प्राणी और तारे दोनों ही एक समान प्रकार की क्रियाविधि से बनते हैं! जैसे दो अनस्टेबल हैप्लाइड कोशिकओं या गेमेट के फ्यूजन से एक स्टेबल फर्टाइल सेल या उर्वर कोशिका बनती है जो गर्भ में पूरे शरीर में बदल जाती है। इस प्रमाणिक जीव वैज्ञानिक क्रियाविधि को तारों के निर्माण की प्रक्रिया में देखने और खोजने का प्रयास किया तो यह आइडिया विकसित हुआ कि ‘‘स्वतंत्र अन्तरिक्ष में दो अनस्टेबल हिलियम एटमों के फ्यूजन से एक स्टेबल हिलियम एटम बनता है। इस प्रक्रिया में हुए मास डिफक्ट के कारण 26.7 मेगा इलेक्ट्रोन वोल्ट एनर्जी मुक्त होती है। यह एनर्जी चारों तरफ फैलती है। इससे हिलियम एटम के चारों तरफ स्थित स्पेस ऊपर या बाहर की तरफ कर्व हो जाता है। स्पेस के कर्व होने से हिलियम एटम के चारों तरफ एक गोलाकार रिक्त स्थान बनता है। हिलियम एटम के चारों तरफ स्पेस फैब्रिक्स कर्व होने से बने बबल रूपी रिक्त स्थान में कोई स्पेस फैबिक्स नहीं बचता है क्योंकि वह बाहर की तरफ मुड़ जाता है। इस रिक्त स्थान को भरने के लिए इस खाली बबल की समस्त आन्तरिक सरफेस से ग्रेविटि लाइनें या वेव बनती है, वे इनवर्ड स्पीरली एक्सिलरेटिंग एक्सपैंन्सन करती है और इस बबल के केन्द्र पर स्थित एक हिलियम एटम पर इनवर्ड स्पीरल प्रेशर बनाती है और इससे यह एक हिलियम एटम अपने अक्ष पर घूर्णन शुरु करता है और इनवर्ड एक्सीलरेटिंग इनवर्ड स्पीरल प्रेशर फील करता है।
इस प्रक्रिया से बबल रूपी रिक्त स्थान की आन्तरिक सरफेस से शुरु होकर इसके केन्द्र तक ग्रेविटि बन जाती है जो इसके केन्द्र पर अधिकतम हो जाती है। इस ग्रेविटि के कारण अब ग्रेविटि बबल के अन्दर आने वाला हर एटम इसके केन्द्र की तरफ एक्सिलरेटिंग इनवर्ड स्पीरल पुश फील करता है और इनवर्ड स्पीरल दिशा में एक्सिलरेटिंग गति करता है। इसकी गति इसके केन्द्र तक पहुंचते पहुंचते एक्सिलरेट होकर बहुत अधिक बढ़ जाती है। उच्च गति से केन्द्र से टकराकर हाइड्रोजन एटम फ्यूज होते हैं। फ्यूजन से फिर नए हिलियम एटम बनते हैं, एनर्जी मुक्त होती है और ग्रेविटि बबल बड़ा होता जाता है। बबल की साइज के अनुपात में ग्रेविटि बढ़ती जाती है। बड़े ग्रेविटि बबल में अधिक एटम आते हैं और इससे ग्रेविटि बबल के केन्द्र पर बनने वाले अन्तिरिक्षीय पिण्ड की साइज बढ़ती जाती है।
इस प्रक्रिया से प्रथम तारा बनता है। इस तारे में न्युक्लियर फ्यूजन होता रहता है, ताप बढ़ता है और एक आउटवर्ड थर्मल प्रेशर बन जाता है। इससे इस तारे के इक्वेटर जोन से उसके चारों तरफ हाई एनरजाइज्ड हाइड्रोजन न्युक्लिआई मुक्त होते है जो इसके चारो तरफ एक दूरी पर जाकर संयोगवश फ्यूज होकर हिलियम में बदल जाते है और इससे इस तारे के ग्रेविटि बबल में ही परन्तु तारे के बाहर दूर नए ग्रेविटि बबल बनते हैं। चूंकि नए ग्रेविटि बबल तारे के ही ग्रेविटि बबल में बनते है, इसलिए वे बनते ही तारे की परिक्रमा करने लगते हैं। इन ग्रेविटि बबलों में बनने वाले पिण्ड ग्रह होते हैं। ये ग्रह अपने ग्रेविटि बबल के केन्द्र पर रहकर घूर्णन करते हुए तारे की परिक्रमा करते हैं। इस ग्रेविटि बबल की बाहरी सरफेस तारे की पदार्थ सतह से एक निश्चत दूरी पर रहती है। जैसे तारे पदार्थ फैलता है, तो ग्रह का ग्रेविटि बबल उसी अनुपात में तारे से दूर होता रहता है। ग्रह के केन्द्र में न्युक्लियर फ्यूजन से उसके ग्रेविटि बबल का आकार भी बढ़ता जाता है, इससे इसी अनुपात में ग्रेविटि बबल का केन्द्र तारे से दूर होता जाता है और ग्रेविटि बबल के केन्द्र पर स्थित ग्रह भी तारे से दूर होता रहता है। ग्रह के केन्द्र में न्युक्लियर फ्यूजन साइकिल में होता है। इससे इनका ग्रेविटि बबल भी साइकिल में बड़ा होता रहता है, इसलिए ग्रह तारे की परिक्रमा अण्डाकार में करते हैं।
इन ग्रहों के कन्द्र में हुए न्युक्लियर फ्यूजन से एनर्जी बनती है और ऊपर आती है। इससे ज्वालामुखियों के द्वारा हाइ एनजाइज्ड न्युक्लिआई मुक्त होते है जो ग्रह के ग्रेविटि बबल में ही परन्तु ग्रह की सतह से दूर फ्यूज होकर हिलियम एटम में बदलकर ग्रेविटि बबल बनाते हैं। इनके केन्द्र पर उपग्रह बनते है। इस तरह प्रथम तारा मण्डल बनता है। इस प्रथम तारे का ग्रेविटि बबल ग्रहों और उपग्रहों के ग्रेविटि बबल बनने से बहुत अधिक बड़ा हो जाता है क्योंकि यह सभी ग्रह और उपग्रह प्रथम तारे के ग्रेविटि बबल में रहते हैं और इन सभी में न्युक्लियर फ्यूजन होता रहता है और ग्रेविटि बबल बड़ा होता रहता है। इससे प्रथम तारे की ग्रेविटि बहुत अधिक बढ़ जाती है। इससे न्युक्लियर फ्यूजन बहुत अधिक बढ़ जाता है। तारा बड़ा होता जाता है। इसकी ग्रेविटि बढ़ती जाती है और अन्त में प्रथम तारा सुपरनोवा विस्फोट से ब्लेक होल या न्युट्रान स्टार में बदल जाता है, इसका पदार्थ अन्तरिक्ष में फैल जाता है। अत्यधिक बड़े ग्रेविटि बबल के कारण इसके केन्द्र तक पहुंचते पहुंचते ग्रेविटि वेव अधिक दूरी तय करती है। ग्रेविटि वेव एक्सिलरेटिंग इनवर्ड स्पीरल एक्पैन्शन के कारण केन्द्र की तरफ अत्यधिक पावरफुल इनवर्ड स्पीरल पुश जनरेट करती है। इससे इसकी तरफ आने वाले एटमों तथा फोटोनों की गति इतनी बढ़ जाती है कि वे वापस नहीं आ सकते। इसके केन्द्र तक जाते जाते एटम पुनः क्वार्क और लैपटान में बदल कर दो विपरीत दिशाओं में गतिमान हो जाते हैं। यहां तक कि फोटोन भी यहां से वापस नहीं आते है क्योंकि वे भी इस केन्द्र से अन्य प्रकार के छोटे पार्टिकल में बदल कर दो दिशाओं में गतिमान हो जाते हैं। इस तरह ब्रह्माण्ड का प्रथम तारा अपने ग्रेविटि बबल के केन्द्र पर रहते हुए ही ब्लेक होल में बदल जाता है जिसके चारों तरफ आकाशगंगाएं बनकर ब्रह्माण्ड बनता जा रहा है।
इसी बीच प्रथम तारे के ग्रह भी बड़े होते जाते है और उनका ग्रेविटि बबल बढ़ता जाता है और इस कारण से ग्रह अपने तारे से दूर होता जाता है और ग्रह बड़े होकर तारों में बदल जाते हैं और ग्रहों के उपग्रह इन तारों के ग्रह बन जाते हैं और इन ग्रहों के ग्रेविटि बबल में फिर नए ग्रेविटि बबल बन कर उपग्रह बनते जाते हैं। इस तरह प्रथम तारे के ग्रेविटि बबल में ही असंख्य तारें और ग्रह बन जाते है।
प्रथम तारा ब्लेक होल में बदल जाता है और इसके चारों तरफ स्थित तारा मण्डलों से एक आकाशगंगा बन जाती है। फिर इस आकाशगंगा में ही एक नया तारा ब्लेक होल में बदल कर नई आकाशक गंगा बनाता जाता है और इससे एक प्रथम ब्लेक होल के विशाल ग्रेविटि बबल में ही असंख्य ब्लेकहोल ग्रेविटि बबल बनते जाते है और इनमें असंख्य तारे ग्रह और उपग्रह बनते जाते हैं। इससे प्रथम तारे से बने प्रथम ब्लेकहोल के चारों असंख्य ब्लेक होल और आकाशगंगाए बनती जाती हैं। ये सभी आकाशगंगाएं एक विशाल ग्रेविटि बबल में ही रहती है। इसी कारण सारी आकाशगंगाएं, तारे, ग्रह और उपग्रह एक दूसरे से अपने अपने ग्रेविटि बबलों की विशाल व्यवस्था के द्वारा जुड़े हुए हैं और इनके ग्रेविटि बबलों का आकार निरन्तर बढ़ने के कारण ही ये एक दूसरे से दूर होते जा रहे हैं।
आधुनिक विज्ञान ने ग्रेविटि को सबसे कमजोर नेचुरल फोर्स मान कर उसे क्वांटम लेवल पर निष्क्रिय माना है। परन्तु असामान्य विश्व परिकल्पना में ग्रेविटि सर्वाधिक पावरफुल नेचुरल फोर्स है जो एक एटम के लेवल पर एक्ट करती है और बाडी लेवल पर भी।
एक हिलियम एटम के जन्म से एक ग्रेविटि बबल बनकर उसके केन्द्र पर एक स्पेस ओबजक्ट बनने के इस आइडिया का विश्लेषण किया तो इससे असामान्य विश्व परिकल्पना असामान्य तरीके से प्रयोगयोग्य स्वरूप में बदल गई और इससे ग्रेविटि के सृजन का नया वैज्ञानिक सिद्धान्त प्रकृट हुआ जिसको आधुनिक भौतिकि विज्ञान द्वारा किसी भी वैज्ञानिक साक्ष्य और तथ्य के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता, इसलिए यह स्वंय प्रमाणित बन गया। इसे केवल मंगल पर न्युक्लियर फ्यूजन के प्रयोग से एक हिलियम एटम बनाकर साबित किया जा सकता है।
इसी तरह जीवन के कैमिकल इवोल्युशन के कोई भी प्रायोगिक प्रमाण नहीं मिलने के कारण आधुनिक जीव विज्ञान पृथ्वी से दूर किसी दूसरे ग्रह पर जीवन की तलाश कर रहा है। पूरा अन्तरिक्षीय विज्ञान और तकनिकि जीवन की तलाश में पृथ्वी के आसपास के अन्तरिक्ष को खंगालने में जुटा है, परन्तु कहीं भी नहीं मिला। वैज्ञानिक तथ्य कहते हैं कि पृथ्वी पर जीवन किसी भी ग्रह से नहीं आ सकता है क्योंकि इनके बीच के अन्तरिक्ष में स्थित रेडियशन जीवन के किसी भी रूप को नष्ट करने के लिए सक्षम है। अन्तरिक्ष में जीवन की तलाश के लिए चलाए जा रहे अन्तरिक्ष अभियानों की अब तक की खोजें स्पष्ट तरीके से संकेत देती हैं कि हमारे सौर मण्डल के दूसरे ग्रहों पर जीवन नहीं हैं। इन अन्तरिक्षीय अभियानों के पीछे विज्ञान की यह सोच है कि पृथ्वी पर जीवन किसी भी रासायनिक तरीके से पैदा नहीं हो सका है, इसलिए पृथ्वी पर जीवन अन्तरिक्ष से आया है। परन्तु कहां से और किस रूप में ? इसका उत्तर तलाश करते करते असामान्य विश्व परिकल्पना विकसित हुई कि जीवन बीज पृथ्वी से 1200 किलोमीटर स्थित पोलर ओरबिट में जीनों के रूप में विकसित हो सकते हैं और फिर जीवन बीजों के रूप में ये जीन अन्तरिक्ष से समुद्री सतह पर आकर कोशिकीय डीएनए में बदल सकते हैं और पृथ्वी पर जीवन शुरु हो सकता है। परन्तु कैसे, कब और कहां ?
विज्ञान अभियानों से प्रेरित होकर लेखक जीवन की उत्पत्ति के लिए अन्तरिक्ष में कहीं एैसा स्थान तलाशने लगा, जहां जीवन के बीज बन सके, क्योंकि वैदिक आख्यानों के अनुसार भी जीवन के बीजों की उत्पत्ति ब्रह्मा जी द्वारा अन्तरिक्ष में किसी अज्ञात द्वीप पर हुई। फिर वहां से जीवन बीज प्रजापतियों या युगलों के रूप में धरती पर आए। यहां पर आकर वे विकसित होकर युवा हुए और फिर यौन प्रजनन से अपनी अपनी प्राणी और पादप प्रजातियों की स्थापना की। पौराणिक कहानियों में बताया गया है कि पृथ्वी से कोई वस्तु या देवता आकाश में गया और फिर वहां से उसने जीवन बीज बनाकर धरती पर गिराए और इन बीजों से जीवन विकसित हुआ। वेदों सहित सारे प्रमुख धर्मों का सार है कि अन्तरिक्ष रूपी स्वर्ग से या आकाश से एक नर-मादा का जोड़ा पृथ्वी पर उतरा और फिर इस जोड़े ने यौन प्रजनन से अपनी जनसंख्या में वृद्धि की। प्रत्येक प्राणी प्रजाति हेतु एक नरमादा का जोड़ा आकश से पृथ्वी पर आया और यौन प्रजनन से अपने जैसे प्राणियों को पैदा किया। मिथक प्रतीत होने वाले प्रधान धर्मों की मान्यताएं और विश्वास गलत नहीं हो सकते हैं। इनके पीछे कोई रहस्य छिपा है जिसे आधुनिक विज्ञान खोज नहीं सका।
इन आख्यानों में छिपि वैज्ञानिकता खोजते खोजते यह आइडिया बना कि पृथ्वी पर एक वालकेना लेक में प्राकृतिक तरीके से बायोमॉलीक्यूल बने और हिमयुग मंे वे बर्फ में पैक होकर अन्तरिक्ष में प्रक्षपित हुए। अन्तरिक्ष में यह बर्फ का गोला पृथ्वी के चक्कर काटने लगा। इस दौरान अन्तरिक्ष की स्थितियों और इसकी अपनी ग्रेविटि के प्रभाव से बर्फ के गोले का केन्द्र द्रवित हुआ। फिर पृथ्वी के ध्रुवों के मैग्नेटिक फ्लक्स से इस बर्फ के गोले के द्रवित केन्द्र में बायोमॉलीक्यूल जीवन बीजों या जीनों में बदले। वापस समुद्र में आकर यह बर्फ का गोला पिघला और इसमें स्थित जीन पर्यावरणीय प्रतिक्रिया के लिए कोशिकीय डीएनए में बदल कर कोशिका में बदले और जीवन शुरु हुआ। इस आइडिए की वैज्ञानिकता भी मोदी इफक्ट की देन है 17 वें संस्करण-2023 से पहले जीवन के बीजों या जीनों का संश्लेषण बर्फ के गोले की सतह पर होने की परिकल्पना थी जो वैज्ञानिक तौर पर सम्भव नहीं थी। परन्तु मोदी इफक्ट ने ग्रेविटि पर फोकस करवा दिया तो इस बर्फ के गोले द्वारा अन्तरिक्ष में अपनी ग्रेविटि बनने की परिकल्पना बनी। स्वंय की ग्रेविटि की सहायता से बर्फ के गोले का केन्द्र द्रवित हो गया और फिर बर्फीले गोले के द्रवित केन्द्र में पृथ्वी के मैग्नेटिक फ्लक्स से प्रेरित रासायनिक क्रियाएं हुई और बायोमॉलीक्यूलों से जीन या जीवन बीज बनने की परिकल्पना वैज्ञानिक बनकर प्रयोग योग्य हो गई। मोदी इफक्ट ने हिन्दुत्व से प्रेरित ब्रह्माण्ड और जीवन की उत्पत्ति के अधुरे आइडिए को एक ठोस वैज्ञानिक परिकल्पना में बदल कर उसे प्रयोगों से साबित होने योग्य बना दिया।
असामान्य विश्व परिकल्पना को कम्पयुटर सीमुलेशन के द्वारा जांचा जाए तो इसे किसी भी वैज्ञानिक माडल, तथ्य और प्रयोग के द्वारा रिजक्ट नहीं किया जा सकता, बल्कि आधुनिक विज्ञान जनित सभी माडल इसमें समा जाएंगे। भारत के आई आई टी और इसरो जैसे उच्च शौध संस्थान मिलकर कम्पयुटर सिमुलेशन व अन्य तरीकों के द्वारा असामान्य विश्व परिकल्पना की वैज्ञानिक सम्भाव्यता को जांच व परख कर प्रयोगों से साबित करेंगे। साबित होते ही सारा संसार हमारे वेदों ओर हिन्दुत्व की वैज्ञानिकता के आगे नतमस्तक हो जाएगा और अमृत काल में ही 2047 तक विश्व की विज्ञान महाशक्ति बनकर विकसित भारत संकल्प पूरा होगा।
इस तरह मोदी इफक्ट ने एक अवैज्ञानिक परिकल्पना को वैज्ञानिक बनाते हुए आधुनिक विज्ञान के सबसे अधिक विवादित रहस्यों ग्रेविटि और स्पेस ओबजक्ट बनने की प्रक्रिया को सुलझा दिया है अब इसे प्रयोगों से साबित करना है। असामान्यविश्व परिकल्पना को साबित करने के लिए भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय और संकल्पवान प्रधान मंत्री मोदी जी को एक विज्ञान स्वशौधार्थि सुरेश कुमार का आग्रह और नमन प्रस्तुत है।
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